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हरू (हरज्यू) देवता कुमाऊँ के लोक देवता, उत्तराखंड

हरू (हरज्यू) देवता कुमाऊँ के लोक देवता, उत्तराखंड

हरू (हरजू) देवता उत्तराखंड के कुमाऊँ के मुख्य देवता है।


हरू (हरजू) देवता एक अच्छी प्रकृति के देवता है, और कुमाऊँ के ग्रामों में बहुत पूजे जाते है।  कहा जाता है कि वह चंपावत के कुमाऊँ के राजा हरिशचन्द्र थे।  वह राजा राजपाट छोड़ हरिद्वार में जाकर तपस्वी हो गए।  कहते हैं कि हरिद्वार में हर की पौड़ी उन्ही ने बनाई थी। हरिद्वार से कहा जाता है कि उन्होंने चारों धामों (बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामनाथ, द्वारिकानाथ) की परिक्रमा की।  चारों धामों से लौटकर चंपावत में राजा ने अपना जीवन धर्म-कर्म में ही बिताया, और अपना एक भ्रातृमंडल कायम किया।  उनके छोटे भाई सैम, लाटू तथा उनके नौकर स्यूरा, त्यूरा, रुढ़ा कठायत, खोलिया, मेलिया, मंगिलाया और उजलिया सब उनके शिष्य हो गये। बारु भी चेले बने।  राजा उनका गुरु हो गए।


कुमाऊं के लोक देवता।

हरू (हरजू) देवता है।

हरजू एक अच्छी प्रवृत्ति शुध्द आचरण और दैवीय शक्ति से परिपूर्ण सात्विक देवता हैं। हरज्यू की पूजा पूरे कूर्मांचल में बड़ी श्रध्दा से पूजा होती है। तपस्या, सदाचार, ध्यान व योग के कारण हरज्यू सर्वत्र पूजे जाने लगे। उनकी कृपा से अपुत्र को पुत्र, निर्धन को धन, दुखी सुखी होने लगे, अंधे देखने लगे, लंगड़े चलने लगे, धूर्त सदाचारी होने लगे। देहावसान के बाद हरूज्यू के मंदिर बनाकर पूजा होने लगी। कुमाऊं में यह बात प्रचलित है कि जहां हरू रहते हैं वहां सुख संपदा विराजमान रहती है भक्तों को वांछित फल मिलता है। हरूज्यू की पूजा बड़ी भक्ति शांति और सद्भावना से की जाती है। फल फूल मेवा मिष्ठान्न और रोट का सात्विक भोग लगता है।

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इसलिए यह कहावत है, ""औंन हरू हरपट, जौंन हरू खड़पट "' हरू के आने पर सुख समृध्दि और जाने पर दुख होता है।



हरज्यू देवता की जय।

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